Saturday, March 16, 2024
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कोविड-19 फैलने के मद्देनजर आईसीएआर ने रबी फसलों हेतु किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप को ध्‍यान में रखते हुए रबी फसलों की कटाई एवं मड़ाई और फसल कटाई के बाद कृषि उपज के भंडारण एवं विपणन के लिए निम्नलिखित एडवाइजरी जारी की है:

फसलों की कटाई एवं मड़ाई

देश में कोविड-19 वायरस के फैलने के खतरे के साथ ही फसलें भी तेजी से पकने की ओर अग्रसर हैं। इन फसलों की कटाई एवं उन्‍हें बाजार तक पहुंचाने का काम वांछनीय है क्योंकि कृषि कार्य में समय की बाध्यता अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः किसानों के लिए सावधानी एवं सुरक्षा का पालन करना बहुत ही जरूरी है, ताकि इससे महामारी का फैलाव ना हो सके। ऐसी स्थिति में साधारण एवं सरल उपाय जैसे सामाजिक दूरी बनाए रखना, साबुन से हाथों को साफ करते रहना, चेहरे पर मास्क लगाना, सुरक्षा हेतु कपड़े पहनना एवं कृषि संयंत्रों एवं उपकरणों की सफाई करना अत्यंत आवश्यक है। किसानों के लिए खेती के प्रत्येक कार्य के दौरान एक-दूसरे से सामाजिक दूरी बरकरार रखते हुए काम करना आवश्यक है।

निम्नलिखित कुछ सलाह किसानों के लिए अत्‍यंत उपयोगी हैं:

भारत के उत्तरी प्रांतों में गेहूं पकने की स्थिति में आ रही है। अतः इनकी कटाई के लिए कम्बाइन कटाई मशीन का उपयोग एवं प्रदेशों के अन्दर तथा दो प्रदेशों के बीच इनके आवागमन की अनुमति भारत सरकार के आदेश के तहत दी गई है। हालांकि, इस दौरान मशीनों के रखरखाव एवं फसल कटाई में लगे श्रमिकों की सावधानी एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है।
इसी प्रकार उत्तर भारत की सरसों रबी की महत्वपूर्ण फसल है जिसकी किसानों द्वारा हाथ से कटाई एंव कटी फसलों की मड़ाई का कार्य जोरों से चल रहा है।
मसूर, मक्का और मिर्ची जैसे फसलों की भी कटाई एवं तुड़ाई चल रही है तथा चने की फसल पकने की स्थिति में आ रही है।
गन्ने की कटाई जोरों पर है तथा उत्तर भारत में इसकी रोपाई (हाथ से) का भी समय है।
ऐसी स्थिति में समस्त किसानों एवं कृषि श्रमिकों, जो फसलों की कटाई, फल एवं सब्जियों की तुड़ाई, अंडों और मछलियों के उत्पादन में लगे हैं, द्वारा इन कार्यों के क्रियान्वयन के पहले, कार्यों के दौरान एवं कार्यों के उपरांत व्यक्तिगत स्वच्छता तथा सामाजिक दूरी को सुनिश्चित करना अत्यावश्यक है।
फसलों की हाथ से कटाई/तुड़ाई के दौरान बेहतर होगा कि 4-5 फीट की पट्टियों में काम किया जाए तथा एक पट्टी की दूरी में एक ही श्रमिक को कार्यरत रखा जाए। इस प्रकार कार्यरत श्रमिकों के बीच उचित दूरी सुनिश्चित की जा सकेगी।
कार्यरत सभी व्यक्तियों/श्रमिकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि वे मास्क पहन कर ही काम करें तथा बीच-बीच में साबुन से हाथ धोते रहें।
एक ही दिन अधिक श्रमिकों को कार्य में लगाने के बजाय उस कार्य को अवधि/दिनों में बांट दिया जाए तथा खेतों में काम विभिन्‍न अंतराल में किया जाए।
जहां तक संभव हो, परिचित व्यक्ति को ही खेतों के कार्य में लगाएं। किसी भी अनजान श्रमिक को खेत में काम करने से रोकें, ताकि वे इस महामारी का कारण न बन सकें।
जहां तक संभव हो, कृषि कार्य उपकरणों व मशीनों से ही किया जाए, न कि हाथों से और इसके साथ ही केवल उपयुक्त व्यक्ति को ही ऐसे संयंत्रों को चलाने दिया जाए।
कृषि कार्यों में लगे संयंत्रों को कार्यों के पूर्व तथा कार्यों के दौरान साफ (सैनिटाइज) किया जाना चाहिए। इसके साथ ही बोरी तथा अन्य पैकेजिंग सामग्री को भी साफ (सैनिटाइज) किया जाना चाहिए।
खलिहानों में तैयार उत्पादों को छोटे-छोटे ढेरों में इकट्ठा करें जिनकी आपस में दूरी 3-4 फीट हो। इसके साथ ही प्रत्येक ढेर पर 1-2 व्यक्ति को ही कार्य पर लगाना चाहिए तथा भीड़ इकट्ठा करने से बचना चाहिए।
कटाई किए गए मक्के एवं खोदी हुई मूंगफली की मड़ाई हेतु लगाई गई मशीनों की उचित साफ-सफाई एवं स्वच्छता (सैनिटाइज) सुनिश्चित करें, खासकर यदि इन मशीनों को अन्य किसानों या कृषक समूहों द्वारा उपयोग किया जाना है। इन मशीनों के पार्ट्स (पुर्जो) को बार-बार छूने पर साबुन से हाथ धोना चाहिए।

फसल कटाई के बाद कृषि उपज का भंडारण और विपणन

प्रक्षत्रों पर कुछ खास कार्यों जैसे कि मड़ाई, सफाई, सुखाई, छंटाई, ग्रेडिंग, तथा पैकेजिंग के दौरान किसानों/श्रमिकों को चेहरे पर मास्क अवश्य लगाना चाहिए, ताकि वायु-कण एवं धूल-कण से बचा जा सके और श्वास से संबंधित तकलीफों से दूर रहा जा सके।
तैयार अनाजों, मोटे अनाजों तथा दालों को भंडारण के पहले पर्याप्त सुखा लें तथा जूट की पुरानी बोरियों का उपयोग भडारण हेतु न करें। नई बोरियों को नीम के 5 प्रतिशत घोल में उपचारित कर तथा सूखा कर ही अनाजों के भंडारण हेतु उपयोग करें।
शीत भंडारों, सरकारी गोदामों तथा अन्य गोदामों द्वारा आपूर्ति की गई जूट की बोरियों का उपयोग अनाज भंडारण हेतु काफी सतर्कतापूर्वक करें।
अपने उत्पादों को बाजार-यार्ड अथवा नीलामी स्थल तक ले जाने के दौरान ढुलाई के वक्त किसान अपनी निजी सुरक्षा का भरपूर ध्यान रखें।
बीज उत्पादक किसानों को अपने बीजों को लेकर बीज कंपनियों तक ढुलाई करने की इजाजत है, बशर्ते कि उन किसानों के पास संबंधित दस्तावेज हों तथा भुगतान के वक्त वे समुचित सावधानी बरतें।
बीज प्रसंस्करण एवं पैकेजिंग, संयंत्रों द्वारा बीजों का आवागमन बीज उत्पादक प्रांतों से फसल उत्पादक प्रांतों तक आवश्यक है, ताकि गुणवत्‍ता युक्त बीजों की उपलब्धता आगामी खरीफ सीजन के लिए सुनिश्चित की जा सके (दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक)। उदाहरण के लिए, अप्रैल के महीने में उत्तर भारत में हरे चारे की खेती हेतु बीज की आपूर्ति दक्षिण भारत के प्रांतों द्वारा की जाती है।
इनके अतिरिक्त, किसानों द्वारा उनके प्रक्षेत्रों पर तैयार टमाटर, फूल गोभी, हरी पत्तेदार सब्जियां, खीरा तथा लौकी श्रेणी की अन्य सब्जियों के बीज के सीधे विपणन में किसानों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।

खेतों में खड़ी फसलें

जैसा कि देखा जा रहा है कि इस बार ज्‍यादातर गेहूं उत्पादक प्रांतों में औसत तापमान विगत अनेक वर्षों के औसत तापमान से कम है, अतः गेहूं की कटाई कम-से-कम 10-15 दिन आगे बढ़ने की संभावना है। ऐसी दशा में किसान यदि 20 अप्रैल तक भी गेहूं की कटाई करें तो भी उन्हें कोई आर्थिक नुकसान नहीं होगा। इस प्रकार गेहूं की खरीदारी राज्य सरकारों व अन्य एजेंसियों द्वारा करना आसान होगा।
दक्षिण भारत के प्रातों में शीतकालीन (रबी) धान की फसल के दाने पुष्ट होने की अवस्था में हैं तथा नेक ब्लास्ट रोग से प्रभावित हैं। अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि वे संबंधित रोगनाशक रसायन का छिड़काव सावधानीपूर्वक करें।
इन्हीं प्रांतों में धान की कटाई की अवस्था में यदि असामयिक बारिश हो जाए तो किसानों को 5 प्रतिशत लवण के घोल का छिड़काव फसल पर करना चाहिए, ताकि बीज अकुंरण को रोका जा सके।
उद्यानिकी फसलें, खासकर, आम के पेड़ पर इस समय फल बनने की अवस्था है। आम के बागों में पोषक तत्वों के छिड़काव तथा फसल सुरक्षा के उपायों के दौरान रासायनिक कच्‍चे माल का समुचित संचालन, उनका सम्मिश्रण, उपयोग तथा संबंधित संयंत्रों की सफाई अत्यंत आवश्यक है।
चना/सरसों/आलू/गन्ना/गेहूं के बाद खाली खेतों में जहां ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती होनी है वहां मूंग की फसलों में सफेद मक्‍खी के प्रबंधन हेतु उचित रसायनों के उपयोग के दौरान समुचित सुरक्षा का पालन करें, ताकि इन फसलों को पीले मोजैक (विषाणु) के प्रकोप से बचाया जा सके।

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