- नारद संचार द्वारा वर्तमान परिदृश्य में पत्रकारों की सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा के सन्दर्भ में केंद्र एवं राज्य सरकार के उत्तरदायित्व पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया
- लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ: मीडिया की ज़रूरतों पर भी ध्यान दे केंद्र और राज्य सरकार, कोरोना काल में पत्रकारों का हुआ बुरा हाल: सुजाता माथुर
- कोरोना के कारण लगभग 10,000 पत्रकार बेरोजगार हुए या संगठन के पास पर्याप्त पैसे न होने पर इस महामारी की हालत में नौकरी से निकाला: रास बिहारी
नई दिल्ली : कोरोना महामारी को ध्यान में रख्ते हुए “वर्तमान परिदृश्य में पत्रकारों की सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा सन्दर्भ में केंद्र एवं राज्य सरकार के उत्तरदायित्व पर नारद संचार द्वारा एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया, परिचर्चा में नैशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के प्रेसिडेंट रासबिहारी, फेडरेशन ऑफ़ पीटीआई एम्प्लाइज यूनियन की सलाहकार : सुजाता माथुर, दूरदर्शन के पत्रकार : चंद्र शेखर जोशी, स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार : नरेश तनेजा ने भाग लिया। रासबिहारी ने विषय पर रौशनी डालते हुए कहा की, “हमने पत्रकारों के साथ मिलकर केंद्र व राज्य सरकार को पत्र लिख कर भेजे जिसका जवाब हमे आजतक नहीं मिला, हमने अपने पत्रकार मित्रो को 2000 वेतन देकर उनके लिए राशन का प्रबंध किया| रास बिहारी जी का कहना है की पत्रकारों को आर्थिक पैकेज में शामिल किया जाए, राज्य और केंद्र सरकार प्रिंट मीडिया को विज्ञापन प्रदान करे जो इस महामारी के समय में वेतन का साधन बन सके, तथा एक मीडिया परिषद् बनाया जाए जिसमें वर्तमान परिदृश्य के हिसाब से आर्थिक व्यवस्था पर ध्यान दिया जाए| रास बिहारी ने कहा की सरकार को पत्रकारों की ज़रूरत नहीं बल्कि उनको संस्था के मालिक की खबर है, पत्रकारिता को आज के समय में कस्टमाइज़ कर दिया गया है|”
सुजाता माथुर का कहना है, “लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से एक स्तम्भ है मीडिया जिसकी एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है| चाहे कोरोना हो या ना हो पत्रकारों ने हमेशा इन चार समस्याओ का सामना किया है, पत्रकारों की नौकरी, आर्थिक, सामाजिक और कानूनी सुरक्षा| पत्रकार अपनी जान को जोखिम में डालके, उत्पीड़नाओं को सहकर अपनी जिम्मेदारियां बखूबी पूरी करते है जिसके बदले में राज्य और केंद्र सरकार को यह चार सुरक्षाए पत्रकारों तक पहुंचाने के लिए मीडिया के स्वतन्त्र परिषद् का निर्माण करना चाहिए जिसमे मीडिया के विषय पर हर समस्या पर ध्यान दिया जायेगा अथवा एक पुलिस का मीडिया समर्पित सेल का निर्माण किया जाना चाहिए, पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक्ट बनाया जाये।”
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए पत्रकार चंद्र शेखर ने कहा, “इस बुरे समय में पत्रकारों को बहोत परेशानी उठानी पड़ रही है, आज की स्तिथि में हर मीडिया के माध्यम मे, बड़ी से बड़ी संस्थाओ में से पत्रकारों को निकाला गया, सैलरी में कटौती की गयी, और छोटे मीडिया हाउसेस के पत्रकारों को निकाला गया। पत्रकार इस गंभीर समय में भी अपनी जान को दाव पर लगाकर खबरे ला रहे है, पर उनकी आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा का ध्यान नहीं दिया जा रहा।” नरेश तनेजा जी ने कहा, “हर अखबार और मीडिया हाउस अपने आप को नंबर एक पर दिखाता है, पर इस बुरे समय में अपने कर्मचारियों को पैसे ना देना, उन संस्थाओ को नंबर एक नहीं बनाता, हर मीडिया हाउस के पास इतनी पूंजी है कि वह अपने पत्रकारों को वेतन दे सके| उनका कहना है कि सरकार को मीडिया हाउसेस को पैसा देने की जगह छोटे पत्रकारों और स्वतन्त्र पत्रकारों की आर्थिक अवस्था पर ध्यान दिया जाए|” इस ऑनलाइन परिचर्चा को सोशल मीडिया के द्वारा विभिन्न राज्यों मे रह रहे लोगो से जोड़ कर उनकी राय और प्रतिक्रिया दोनो ली गयी।