Friday, December 20, 2024
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पूसा कृषि संस्थान में किसानों ने सुनाई अपनी सफलता की कहानी

– पूसा संस्थान में प्रगतिशील किसानों को किया सम्मानित
– विशेषज्ञों को भावी अनुसंधान की दिशा तय करने में मिलेगी मदद
– किसानों ने उन्नत तरीकों को न स्वयं अपनाया, बल्कि साथी किसानों तक भी किया हस्तांतरित

नई दिल्ली, 6 जून 2024

दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा संस्थान) के डॉ बी.पी. पाल सभागार में गुरूवार को देशभर के प्रगतिशील किसानों के सम्मान के लिए आयोजित किसान सम्मेलन में पुरस्कार वितरण से पहले किसानों ने अपनी अपनी सफलता की कहानी सुनाई। बता दें कि पूसा संस्थान में वर्ष 2008 से नवोन्मेषी किसान सम्मान तथा वर्ष 2012 से अध्येता किसान सम्मान की शुरुआत की गई थी। अब तक देशभर के विभिन्न राज्यों के 400 से अधिक किसानों को भा.कृ.अ.सं.-अध्येता किसान तथा नवोन्मेषी किसान के रूप में सम्मानित किया जा चुका है। इस अवसर पर 4 पद्मश्री से सम्मानित किसानों को भी आमंत्रित किया गया है। गुरूवार को पूसा संस्थान में आयोजित इस सम्मान समारोह में इस वर्ष 6 राज्यों के 7 किसानों को अध्येता किसान (फेलो फार्मर) तथा 22 राज्यों के 33 किसानों को नवोन्मेषी किसान (इनोवेटिव फार्मर) पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसमें 8 राज्यों से 9 किसान महिलाएं, 6 आदिवासी किसान भी शामिल किए गए। इस दौरान पुरस्कार से सम्मानित किसानों ने अपनी सफलता की कहानी सुनाई। इस कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक (कृषि प्रसार) डॉ यू.एस. गौतम, पूसा संस्थान के निदेशक डॉ ए.के. सिंह, संस्थान के सभी संयुक्त निदेशक तथा सभी संभाध्यक्ष एवं कृषि के विद्यार्थी उपस्थित रहें। उन्होंने कहा कि सम्मानित किसानों को परस्पर संवाद करने का मौका मिलेगा वहीं विशेषज्ञों को भावी अनुसंधान की दिशा तय करने तथा विद्यार्थियों को भी प्रेरणा मिलेगी।

संस्थान के निदेशक डॉ ए.के. सिंह और संयुक्त निदेशक (प्रसार) डॉ आर.एन. पड़ारिया के नेतृत्व में आयोजित किया गया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान प्रतिवर्ष लगभग 40 किसानों को चिह्नित कर सम्मानित करता है। यहां पुरस्कृत किसानों ने खेती के विभिन्न मॉडल तैयार कर अपने-अपने क्षेत्रों में स्थानीय रूप से समेकित कृषि प्रणाली के विकास और अपनी सफलता की कहानी बताई। इसमें खाद्यान्न फसलें, बागवानी फसलें आदि शामिल हैं। कई सफल किसानों ने फसल विविधीकरण को अपनाकर अपनी आय को बढ़ाया है। इसके अलावा हाईटेक कृषि पद्धतियों, जैसे संरक्षित खेती, गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत, सोलर प्रणालियों, जल-संसाधन के संरक्षण एवं उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकों को अपनाया। विभिन्न किसानों ने आई.पी.एम., उन्नत कृषि मशीनरी और हाइड्रोपोनिक्स आदि का भी अपनी कृषि में समावेश किया है।

यहां बताया गया कि अनेक किसानों ने उत्पादन के साथ-साथ प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन के लिए भी नवाचार किए हैं। किसानों ने प्रमुख रूप से खाद्यान्न फसलों के बीज उत्पादन के क्षेत्र में बहुत योगदान किया। इसमें सतत कृषि की पद्धतियों को अपनाया, जिसमें प्रमुख रूप से जैविक नाशीजीव, जैव उर्वरक, केंचुआ खाद, बायोगैस स्लरी के उपयोग के साथ-साथ उत्पादन इकाइयों का निर्माण किया। फसलों के अवशेष प्रबंधन के लिए पूसा डीकंपोजर का इस्तेमाल किया और पराली से खाद बनाई। किसानों की एक बड़ी उपलब्धि यह रही है कि उन्होंने इन उन्नत तरीकों को न स्वयं अपनाया, बल्कि इन्हें साथी किसानों तक भी हस्तांतरित किया। उन्होंने किसान उत्पादक संगठन, स्वयं सहायता समूह भी बनाया तथा रोजगार का भी सृजन किया।   

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