– इसी दिन 23 सितंबर 1918 को हाइफा की लड़ाई लड़ी गई थी
– इस लड़ाई में राजपूताने की सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह ने किया था
– अंग्रेजों ने जोधपुर, मैसूर, हैदराबाद रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के आदेश दिए गए
नई दिल्ली, 23 सितंबर 2022:
नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने शुक्रवार को “हाइफ़ा विजय दिवस” के अवसर पर एनडीएमसी और इंडो-इजराइल मैत्री मंच के सहयोग से हाइफ़ा तीन मूर्ति चौक पर आयोजित कार्यक्रम में हाइफ़ा युद्ध के शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर उपाध्याय ने कहा कि आज का दिन भारत के वीर शहीदों के शौर्य, साहस और पराक्रम का दिवस है क्योंकि इसी दिन 23 सितंबर 1918 को हाइफा की लड़ाई लड़ी गई थी और इस लड़ाई में राजपूताने की सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह ने किया था। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने जोधपुर, मैसूर, हैदराबाद रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के आदेश दिए गए, जिसके बाद यह राजस्थानी रणबांकुरों की सेना दुश्मन को खत्म करने और हाइफा पर कब्जा करने के लिए आगे की ओर बढ़ी। लेकिन तभी अंग्रेजों को यह मालूम चला कि दुश्मन के पास बंदूकें और मशीन गन है जबकि जोधपुर रियासत की सेना घोड़ों पर तलवार और भालों से लड़ने वाली थी। दूसरी ओर यह सेना को दुश्मन पर विजय प्राप्त करने के लिए बंदूक, तोपों और मशीन गन के सामने अपनी छाती अड़ाकर अपनी परम्परागत युद्ध शैली से बड़ी बहादुरी के लड़ रही थी। इस लड़ाई में जोधपुर की सेना के करीब नो सौ सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए।
उपाध्याय ने कहा कि युद्ध का परिणाम ने एक अमर इतिहास लिख डाला। जो आज तक पुरे विश्व में कही नहीं देखने को मिला था। क्योंकि यह युद्ध दुनिया के मात्र ऐसा युद्ध था जो की तलवार और बंदूकों के बीच हुआ। लेकिन अंततः विजय श्री राठौड़ों को मिली और उन्होंने हाइफा पर कब्जा कर लिया और चार सौ साल पुराने ओटोमैन साम्राज्य का अंत हो गया और हाइफा के इस युद्ध ने इज़राइल को आजाद करवाया था। उन्होंने कहा कि यह युद्ध इतना ऐतिहासिक हैं कि आज भी इजराइल के स्कूलों में पढ़ाया जाता हैं। भारतीय शहीद सैनिकों के सम्मान में और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इजरायल और भारत में प्रतिवर्ष 23 सितम्बर को समारोह आयोजित किए जाते हैं।
उपाध्याय ने आगे बताया कि इजराइल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के 2018 में भारत यात्रा के दौरान “इंडिया- इजरायल मित्रता” पर समर्पित तीन मूर्ति को “तीन मूर्ति हाइफा चौक” का नाम दिया गया। उपाध्याय ने कहा कि आज का दिन विश्व बन्धुत्वा और विश्वास का दिवस है जिसमें भारत ने दूसरे देश की अखंडता के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने कहा कि इस वर्ष हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और आज का दिन इसलिये भी विशेष भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि मैं “हाइफ़ा विजय दिवस” को परिषद् प्रोग्राम कैलेंडर से जोडने के सिफारिश भी करूँगा।
उन्होंने कहा कि भारत की निति है कि हम सदैव दूसरे देश कि सीमओं और संप्रभुता पर विश्वाश रखते है और विस्तारवाद की निति का विरोध करते हैं। इस अवसर पर श्री नाउर गिलोनी ने कहा कि “हाइफ़ा विजय दिवस” इजरायल में बीते कल बहुत धूमधाम से मनाया गया। उन्होंने कहा कि भारत और इजरायल की दोस्ती का सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व है। युद्ध इतना ऐतिहासिक हैं कि आज भी इजराइल के स्कूलों में पढ़ाया जाता है और इजराइल के पाठ्यक्रम में भी भारतीय सेनाओं की वीरता और योगदान का उल्लेख है।
डॉ इंद्रेश कुमार ने अपने भाषण में कहा कि भारतीय जोधपुर, मैसूर, हैदराबाद सेना के जवानों ने दूसरे देश जाकर जो अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया था वो अपने आप में ऐतिहासिक था क्योंकि यह युद्ध दुनिया का एक ऐसा युद्ध था जो की तलवार और बंदूकों के बीच हुआ। इस अवसर पर वी.के.सिंह-पूर्व सेना जनरल और राज्यमंत्री – सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और नागरिक उड्डयन, श्री नाउर गिलोनी- इजरायल एम्बेसडर ऑफ इंडिया, डॉ इंद्रेश कुमार – भारत तिब्बत सहयोग मंच मुख्य संरक्षक और परिषद् के स्कूली बच्चो ने भी भाग लिया।