Friday, December 20, 2024
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टैलेंटनॉमिक्स इंडिया और केएएस-जापान ने दक्षिण एशिया में महिलाओं के लिए समावेशी शहरी स्थान बनाने पर होने वाली चर्चा की अगुवाई की

  • – इसका उद्देश्य ऐसे शहर बनाना है जहां हर महिला आगे बढ़ सके।
  • – शहरी नियोजन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए व्यावहारिक चर्चा में भाग लिया।
    • – महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है

नई दिल्ली, 07.02.2024:

टैलेंटनॉमिक्स इंडिया ने केएएस-जापान के साथ साझेदारी में, “दक्षिण एशिया में महिलाओं के लिए समावेशी शहरी स्थानों के निर्माण” पर केंद्रित अपने उद्घाटन गोलमेज चर्चा के सफल आयोजन की घोषणा की। बुधवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम में तमाम हितधारकों को महत्वपूर्ण मुद्दों पर फोकस करने और कार्रवाई योग्य समाधान तैयार करने के लिए एक मंच पर लाया गया। इसका उद्देश्य ऐसे शहर बनाना है जहां हर महिला आगे बढ़ सके। यह इवेंट लैंगिक समानता पर आधारित एक न्यायसंगत दुनिया – इक्विवर्स बनाने की थीम पर आधारित था। इसमें तमाम सम्मानित वक्ताओं और प्रतिभागियों ने इस काम में आने वाली प्रमुख बाधाओं की पहचान करने और लिंग-समावेशी शहरी नियोजन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए व्यावहारिक चर्चा में भाग लिया। इवेंट का माहौल टैलेंटनोमिक्स इंडिया की संस्थापक और सीईओ इप्सिता कथूरिया और केएएस के एशिया/प्रशांत प्रमुख क्रिश्चियन एक्ले की प्रेरक टिप्पणियों से बना। इनके दूरदर्शी नेतृत्व ने एक सार्थक और समृद्ध संवाद का मार्ग प्रशस्त किया।

इस मौके पर, सेवानिवृत्त न्यायाधीश और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने लैंगिक समानता पर अपना व्यावहारिक नजरिया पेश किया। उन्होंने परिवारों के भीतर से शुरू होने वाले भेदभाव की व्यापक प्रवृत्ति पर जोर दिया। महिलाओं की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा “महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है, लेकिन अक्सर उनकी दिक्कतों से लड़ने के लिए संसाधनों या जानकारी की कमी होती है।” उन्होंने आगे कहा कि हमें सिर्फ शहरी स्थानों में लैंगिक समानता पर चर्चा करने से आगे बढ़ने की जरूरत है। हमें अब ऐसे स्थान बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिए कोई जगह न हो। हमें सार्वजनिक स्थानों पर महिला-केंद्रित सुविधाओं के विकास पर फोकस करना चाहिए। मित्तल ने महिला कैदियों के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जो पुलिस लॉक-अप की खराब स्थितियों और अपर्याप्त शौचालय सुविधाओं सहित तमाम कठिनाइयों का सामना करती हैं। इसी तरह, उन्होंने नगरपालिका कर्मचारियों, माली और महिला कर्मचारियों के लिए सार्वजनिक शौचालयों की कमी पर प्रकाश डाला, जिन्हें अपना काम करते समय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मित्तल ने विकलांग व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी जोर दिया, जिन्हें सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते समय यौन उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है। उन्होंने शहरी क्षेत्रों में अधिक समावेशी ढांचागत विकास को बढ़ावा देने के लिए विकलांग व्यक्तियों के लिए लो-फ्लोर बसों और अन्य सुविधाओं को शुरू करने की वकालत की।
सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक डॉ. मीरान चड्ढा बोरवंकर ने लैंगिक भेदभाव पर अपनी राय जाहिर की। उन्होंने महिला पुलिस अधिकारियों के सामने आने वाली उनके पुरुष समकक्षों से समर्थन की कमी और महिला-अनुकूल वातावरण के अभाव जैसी चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने पुलिस स्टेशनों के भीतर यौन उत्पीड़न के मुद्दे की ओर भी इशारा किया। डॉ. बोरवंकर ने कहा: “लिंग आधारित भेदभाव केवल पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसको बाहर के नागरिकों के साथ बातचीत करते समय भी महसूस किया जा सकता है। लैंगिक समानता को बढ़ावा देने पर केंद्रित सम्मेलन जागरूकता पैदा करने और इन मुद्दों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हमें ऐसे समाज की वकालत करनी चाहिए जो महिलाओं के साथ समान व्यवहार करे और उन्हें पुलिस बल के भीतर और सार्वजनिक जीवन के दौरान इसके सभी पहलुओं में एक सुरक्षित और सहायक वातावरण प्रदान करे।”

लैंगिक समानता पर आधारित परिवहन सुविधा के महत्व पर जोर देते हुए वर्ल्डक बैंक के सीनियर ट्रांसपोर्ट स्पे श्यवलिस्ट लघु पाराशर ने एक दूरदर्शी नजरिया रखा। उन्होंने कहा, “हमें सिर्फ महिलाओं के लिए ही परिवहन सेवाएं नहीं देनी चाहिए, बल्कि उससे भी आगे बढ़ना चाहिए। महिलाओं और अन्य वंचित समूहों के लिए परिवहन सुविधाएं बनाकर हम रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर सकते हैं।” पाराशर ने शहरी नियोजन को खासकर लैंगिक समानता के संदर्भ में और ज्यादा समावेशी बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा “सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं की सुरक्षा और देखभाल हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। शहर को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाकर, हम आखिरकार इसे सभी के लिए सुरक्षित बनाते हैं।” शहरी नियोजन में महिला नेतृत्व की कमी की ओर इशारा करते हुए, पाराशर ने कहा, “नेतृत्व करने वाले पदों पर अधिक महिलाओं के होने से लैंगिक समानता और समावेशी परिवहन सुविधाओं को बढ़ावा देने में बहुत फायदा होगा। महिला लीडर सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपना सकती हैं और अधिक समतावादी समाज बनाने में सक्रिय रूप से योगदान दे सकती हैं।”

एक्शनएड बांग्लादेश की कंट्री डायरेक्टर फराह कबीर ने पूरे दक्षिण एशिया के शहरी क्षेत्रों में लैंगिक समानता के सामने आने वाली तमाम चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए महिलाओं को उनकी विविध भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के कारण सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में होने वाली परेशानियों पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा: “जनसंख्या के दबाव के साथ तेजी से और बेतरतीब शहरीकरण लैंगिक समानता को साकार करने में महत्वपूर्ण बाधाएं पेश करता है। इसके अलावा, अपर्याप्त फंडिंग के साथ-साथ समावेशी योजना और डिजाइन की अनुपस्थिति इन परेशानियों को बढ़ा देती है। मौजूदा बुनियादी ढांचे में अक्सर महिलाओं, लड़कियों और विकलांग व्यक्तियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए आवश्यक सुविधाओं का अभाव होता है।” कबीर ने लैंगिक समानता पर वैश्विक चर्चा और इसके वास्तविक कार्यान्वयन के बीच असमानता पर भी फोकस किया और इसके लिए समाज की मानसिकता को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए नीति निर्माण और समाज की मानसिकता में बदलाव दोनों के लिए ठोस प्रयासों की जरूरत पर जोर दिया।

इप्सिता कथूरिया ने शहरों को अधिक समावेशी बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा: “आठ साल पहले शुरू की गई एक पहल टैलेंटनॉमिक्स ने लीडिंग भूमिकाओं में लैंगिक समानता की वकालत की और महिलाओं की शिक्षा को प्राथमिकता दी। शहरी परिवेश में महिलाओं के सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए, कथूरिया ने कहा हम एक ऐसे “समतामूलक समाज (इक्विवर्स)” की कल्पना करते हुए जहां लैंगिक समानता आदर्श है, समावेशी विकास के लिए जोश जगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। केएएस-जापान के साथ सहयोग करते हुए, टैलेंटनोमिक्स लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए तमाम लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहा है । हमारे प्रयासों का लक्ष्य लैंगिक समानता की दिशा में एक सामाजिक बदलाव लाना है, जिसमें समावेशी शहरी स्थानों के महत्व पर जोर दिया गया है, जहां सभी व्यक्ति समान रूप से प्रगति कर सकें।”

क्रिश्चियन एक्ले ने समकालीन समाज में इसके महत्व पर फोकस करते हुए लैंगिक समानता की प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने इस मुद्दे को गति देने में इस तरह के सम्मेलनों के महत्व पर बल दिया। एक्ले ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया और इसे राजनीतिक एजेंडे में शामिल करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “भारत में संसदीय चुनावों के करीब आने के साथ, हमें लैंगिक भेदभाव और समानता को चुनावी अभियान का अभिन्न अंग बनाने की जरूरत है।” एक्ले की बातों ने न केवल नीतिगत ढांचे के भीतर बल्कि व्यापक राजनीतिक क्षेत्र में भी लैंगिक मुद्दों को संबोधित करने के महत्व को रेखांकित किया, जो समानता को आगे बढ़ाने और भेदभाव से निपटने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

इस सम्मेलन में दक्षिण एशियाई शहरों में महिलाओं को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों पर केंद्रित आकर्षक गोलमेज सत्र आयोजित किए गए: इंक्लूसिव अरबन ट्रांसपोर्ट एंड मोबिलिटी (समावेशी शहरी परिवहन और गतिशीलता) : इसमं प्रतिभागियों ने सभी पृष्ठभूमि की महिलाओं के लिए शिक्षा, रोजगार और कल्याण तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए रणनीतियों पर बात की। ये बताचीत आर्थिक रूप से मजबूत और वंचित महिलाओं दोनों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सिलाई समाधानों पर केंद्रित थीं। मनोरंजन/व्यायाम के लिए सुरक्षित स्थान: महिलाओं के लिए सड़कों, शॉपिंग सेंटर्स, पार्कों और जिम जैसे सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा की गहन जांच की गई। प्रतिभागियों ने सुरक्षा बढ़ाने और महिलाओं की शारीरिक गतिविधि और अवकाश के लिए अनुकूल स्वागत योग्य वातावरण बनाने के उपायों पर चर्चा की।

उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाएं: सार्वजनिक स्नानघर, क्रेच/बुजुर्ग देखभाल सुविधाएं, सुरक्षित आश्रय, उचित प्रकाश व्यवस्था और आपातकालीन सेवाओं तक पहुंच जैसी आवश्यक सुविधाओं के महत्व पर जोर दिया गया। प्रतिभागियों ने शहरी परिवेश में महिलाओं के आराम, सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए इन जरूरतों को पूरा करने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया। इन चर्चाओं में सार्थक परिवर्तन लाने के लिए सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज से आवश्यक सहयोगात्मक प्रयासों पर भी बल दिया गया। साझेदारी और सहयोग के महत्व पर जोर देते हुए, गोलमेज सम्मेलन का उद्देश्य शहरी योजनाकारों, नीति निर्माताओं, प्रबुद्ध निजी क्षेत्र के नेताओं और नागरिकों के लिए दक्षिण एशिया में लिंग-समावेशी शहरों को आगे बढ़ाने के लिए एक दिशा तय करना था।

टैलेंटनोमिक्स इंडिया और केएएस-जापान की यह पहल दक्षिण एशिया में महिलाओं के लिए सुरक्षित, सुलभ और सशक्त शहरी वातावरण बनाने की दिशा में निरंतर बातचीत और कार्रवाई के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड के रूप में कार्य करती है। सामूहिक रूप से काम करके सभी हितधारक एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं जहां सभी महिलाएं अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए सुरक्षित और सशक्त महसूस करती हैं।

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