- दिल्ली यूनिवर्सिटी के नए वाइस चांसलर की तलाश इस माह से शुरू
- डीयू की ईसी (कार्यकारी परिषद ) की मीटिंग में तय होंगे सर्च कमेटी के लोगों के नाम
- आने वाले वाइस चांसलर को मिलेगा वर्ष- 2022 में डीयू के सौ साल मनाने का अवसर
- दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीटीए ) ने मांग की सामाजिक न्याय के विचारों को मानने वाले हो नए वाइस चांसलर
नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ( कुलपति ) का कार्यकाल अगले साल 10 मार्च 2021 को समाप्त हो रहा है। कार्यकाल समाप्ति से 6 महीने पूर्व नए वाइस चांसलर की तलाश करने की कवायद शुरू कर दी जाती है। माना जा रहा है कि इसी माह (सितंबर माह ) में ईसी की मीटिंग होगी। मीटिंग में सर्च कमेटी के सदस्यों के नामों पर विचार करने के बाद तीन सदस्यों के नामों पर सहमति होने पर सर्च कमेटी बनने की औपचारिकता पूरी हो जाती है।सर्च कमेटी ही नए वाइस चांसलर के लिए विज्ञापनध् आवेदन निकालती है।
आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए ) के प्रभारी प्रोफेसर हंसराज श्सुमन ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था कार्यकारी परिषद (ईसी) में नए वाइस चांसलर के लिए सर्च कमेटी बनती है।सर्च कमेटी में तीन सदस्यों के नाम पास किए जाते है। यह कमेटी ही वाइस चांसलर के लिए विज्ञापन ध् आवेदन पत्र आमन्त्रित करती हैं। उसके बाद कमेटी ही आवेदन पत्रों की स्कूटनी, स्क्रीनिंग कर एमएचआरडी भेजा जाता है। उन्होंने बताया है कि एमएचआरडी में नामों को भेजने से पूर्व कमेटी के सामने उम्मीदवारों का इंटरेक्शन होता है।एमएचआरडी उनमें से तीन सदस्यों के नामों को राष्ट्रपति के पास भेजती है। राष्ट्रपति इनमें से एक नाम की संस्तुति कर वापस भेज देते हैं।जिस नाम पर टिक किया जाता है वहीं वाइस चांसलर बनाया जाता है।
प्रोफेसर सुमन ने बताया है कि पिछले कई माह से वाइस चांसलर के बीमार होने के कारण ईसी की मीटिंग नहीं हुई है। उनका कहना है कि ईसी की मीटिंग में ही सर्च कमेटी के सदस्यों के नामों को तय किया जाता हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के नाते यहाँ पर 6 महीने पहले नए वाइस चांसलर के लिए कवायद शुरू हो जाती है।केंद्रीय विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर बनने के लिए प्रोफेसर पद का 10 साल का अनुभव होना जरूरी है तभी वह इस पद के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- सर्च कमेटी में एक सदस्य आरक्षित वर्ग से हो
प्रोफेसर सुमन ने ईसी से मांग की है कि जब भी सर्च कमेटी गठित की जाए उसमें एक सदस्य आरक्षित वर्ग से लिया जाए ताकि वाइस चांसलर की नियुक्ति में पारदर्शिता बनी रहे और यदि कोई आरक्षित वर्ग का प्रोफेसर इस पद के लिए आवेदन करता है तो उसकी योग्यता के आधार पर उसका नाम पैनल में अवश्य रखा जाना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय जल्द ही अपने सौ वर्ष पूरे करने वाला है लेकिन अभी तक आरक्षित श्रेणी के किसी प्रोफेसर को यहां उच्च पदों पर जगह नहीं दी गई है।
प्रोफेसर सुमन ने यह भी बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय साल-2022 में अपने सौ वर्ष पूरे कर रहा है। डीयू अपने सौ वर्ष पूरे करने पर अपनी स्वर्ण जयंती समारोह मनाएगा।इसलिए भी नए वाइस चांसलर की नियुक्ति बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। डीटीए ने महामहिम राष्ट्रपति से मांग की है कि नए वाइस चांसलर की नियुक्ति करते समय सामाजिक न्याय के विचारों को मानने वाले व अभी तक दलित, पिछड़े वर्ग के किसी प्रोफेसर को डीयू का वाइस चांसलर नहीं बनाया गया है यदि उन्हें अवसर दिया जाए तो वे भी बेहतर कर सकते हैं।पिछली बार भी एक सदस्य का नाम होते हुए उन्हें मौका नहीं दिया गया। डीटीए मांग करता है कि एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के किसी सदस्य को वाइस चांसलर बनने का अवसर दिया जाए।