- सीएम के हस्तक्षेप का दिखने लगा परिणाम – मौत के आंकड़ों में आई गिरावट
- पिछले कुछ दिनों में, प्रतिदिन हो रही मौतों की संख्या में कमी आई है
- जून के मध्य में प्रतिदिन सबसे अधिक 101 मौते हुई,
- पिछले एक पखवाड़े से मौतें घट कर एक दिन में लगभग 46 पर आ गई हैं,
- जो एक महत्वपूर्ण सुधार की ओर इंगित कर रहा है।
नई दिल्ली : जुलाई के पहले सप्ताह में होम आइसोलेशन में शून्य मौतें हुईं, प्रतिदिन की कुल मौतों में भी भारी गिरावट आई है। यह दिल्ली सरकार के अध्ययन के निष्कर्ष हैं। सीएम ने स्वास्थ्य विभाग को पिछले पखवाड़े में हुई सभी मौतों का अध्ययन करने का निर्देश दिया था, ताकि यह समझा जा सके कि मौतों को और कम करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने 10 जुलाई को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किए-
24 जून और 8 जुलाई के पखवाड़े के दौरान दिल्ली में कुल 691 मौतें हुईं, जो इस अवधि के दौरान औसतन 46 मौतें हैं। इन सभी मौतों का अध्ययन और विश्लेषण दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया गया था। इसके कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष इस प्रकार हैं पिछले कुछ दिनों में, प्रतिदिन हो रही मौतों की संख्या में कमी आई है। जून के मध्य में प्रतिदिन सबसे अधिक 101 मौते हुई, पिछले एक पखवाड़े से मौतें घट कर एक दिन में लगभग 46 पर आ गई हैं, जो एक महत्वपूर्ण सुधार की ओर इंगित कर रहा है।
’जून में दिल्ली की कुल मृत्यु दर 3.64 प्रतिशत से घटकर 3.02 प्रतिशत हो गई है। यद्यपि एक दिन का औसत लगभग 2.5 तक कम हो गया है, साथ ही प्रतिदिन मौतों की संख्या औसतन 50 से कम हुई हैं और पिछले पखवाड़े में प्रतिदिन करीब 2000 नए केस आए हैं।’
पिछले पखवाड़े में हुई कुल 691 मौतों में से केवल 7 मौतें होम आइसोलेशन (24 जून से 30 जून के बीच) में हुईं। होम आइसोलेशन के तहत किसी भी मरीज की जुलाई में एक भी मौत नहीं हुई है। इसका श्रेय मुख्यमंत्री द्वारा होम आइसोलेशन के तहत सभी मरीजों को ऑक्सीमीटर वितरित करने के निर्णय को दिया जा सकता है। यह ऑक्सीमीटर मरीजों में ऑक्सीजन स्तर में गिरावट के बारे सचेत करता है, जो बिगड़ते स्वास्थ्य का एक शुरूआती संकेत है।
’केंद्र सरकार की पॉल समिति के अनुसार, भारत में 45 प्रतिशत मौतें पहले 48 घंटों के दौरान होती हैं। दिल्ली में, यह 15 प्रतिशत पर आ गया है। सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों की वजह से यह हो सका है।
– 691 मौतों में से 505 मरीज गंभीर हालत में थे, जब उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया था। इनकी जब पाॅजिटिव रिपोर्ट आई, तो इन मरीजों में से 291 पहले से ही अस्पताल में थे, बाकी सभी को समय पर अस्पताल में भर्ती मिला। अध्ययन में केवल 28 मरीजों के मामले में अस्पताल में भर्ती होने में देरी पाई गई।
– सीएम ने गंभीर कोरोना मरीजों के इलाज के लिए 6 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रक्रियाओं और सिस्टम में सुधार करने की योजना शुरू की थी। इसके परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं
दिल्ली में देश का पहला प्लाज्मा बैंक शुरू होने और लोगों को अपने प्लाज्मा दान करने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने के साथ ही ज्यादा गंभीर मरीज प्लाज्मा थेरेपी से लाभान्वित हो रहे हैं। आशा है कि इससे दिल्ली में मृत्यु दर में और कमी आएगी।मृत्यु दर को और कम करने के लिए क्या उपाय किए जाने की जरूरत है, इस पर चर्चा के लिए सीएम ने शुक्रवार को एक समीक्षा बैठक ली। चूंकि अब लगभग सभी मौतें अस्पतालों में हो रही हैं (होम आइसोलेशन में मौतें शून्य), इसलिए, यह महसूस किया गया कि प्रत्येक अस्पताल के सिस्टम की विस्तृत जांच की जानी चाहिए। सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रत्येक अस्पताल में छुट्टी पाने वाले मरीजों की कुल संख्या में मृत्यु का अनुपात पूछा है। कम अनुपात वाले अस्पतालों का मतलब बेहतर प्रबंधन होगा। इन अस्पतालों में अच्छी प्रथाओं का अध्ययन किया जाएगा और उन अस्पतालों में सुधार किया जाएगा, जहां अधिक मौतें हो रही हैं। सीएम रोजाना सभी गंभीर मामलों की निगरानी करते रहेंगे।
कुल मिलाकर, पाॅजिटिव केस की दर में कमी, अधिक जांच, मौतों की संख्या को कम करना, ठीक होने की अधिक दर, बेड की अधिक उपलब्धता, सभी दिल्ली में स्थिति में तेजी से सुधार की ओर इशारा कर रहे हैं।
1. जांच में वृद्धि – लोगों की समय से जांच में कठिनाई आने की वजह से कुछ गंभीर मरीजों की मौत हो गई थी। अब जांच की संख्या बढ़ने के साथ ही इसका समाधान हो गया है।
2. अस्पातालों में बड़ी संख्या में बेड बढ़ाने के साथ एसिम्प्टोमैटिक और हल्के लक्षण वाले मरीजों के होम आइसोलेशन पर बल दिया गया। प्रतिदिन टेली-काउंसलिंग और ऑक्सीमीटर प्रदान करके होम आइसोलेशन के मरीजों में सुधार किया गया, ताकि लोग घरों में सुरक्षित और आरामदायक महसूस करें। लक्षणों की किसी भी तर की वृद्धि को तत्काल सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए गए।
3. एम्बुलेंस का रिस्पाॅस टाइम बढ़ाकर – पिछले महीने में एंबुलेंस की रिस्पाॅस टाइम को 55 मिनट से घटाकर 30.5 मिनट किया गया है। रिस्पाॅस टाइम सही करने के लिए कई और एंबुलेंस किराए पर ली गई हैं। इससे अस्पतालों में मरीजों का समय पर परिवहन सुनिश्चित हुआ है।
4. त्वरित भर्ती प्रक्रिया – इसे एक बड़ी अड़चन के रूप में पहचाना गया। सीएम के प्रतिनिधियों और प्रत्येक अस्पताल के लिए अलग-अलग अधिकारियों की नियुक्ति की गई, जिन्होंने सुनिश्चित किया कि मरीज को पहले भर्ती किया जाए और बाद में कागजी कार्रवाई की जाए।
5. अस्पताल में बेड की आसान उपलब्धता – निजी और सरकारी दोनों अस्पतालों में बेड की संख्या में भारी वृद्धि के लिए कई कदम उठाए गए। अब, अस्पताल के बेड की कमी की समस्याओं का समाधान हो चुका है। कोविड अस्पतालों में 15000 बेड की उपलब्धता है और आज की तारीख में केवल 4500 बेड पर मरीज हैं।
6. आईसीयू क्षमता में वृद्धि – कोरोना के गंभीर मरीजों में, विशेष रूप से कॉमरेडिटी वाले मरीजों को अक्सर आईसीयू की आवश्यकता होती है, आपातकालीन देखभाल की बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए। 2000 आईसीयू बेड की उपलब्धता के सापेक्ष आज की तारीख केवल 1100 आईसीयू बेड का इस्तेमाल हो रहा है।