- उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सम्मेलन में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हुए शामिल
- नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे लागू करने की कार्ययोजना का अभाव
- मैकाले को दोष देना अब बंद होना चाहिए, पिछली दो शिक्षा नीतियों का क्या किया गया इस पर आत्ममंथन हो
- हर घंटे एक स्टूडेंट आत्महत्या करता है, परीक्षा परक शिक्षा का दबाव खत्म हो
- 20 साल शिक्षा लेने के बाद 80 प्रतिशत बच्चों को रोजगार योग्य नहीं समझा जाता, इसे सुधारना जरूरी
- वोकेशनल और किसी अन्य विषय में स्नातक डिग्री में कोई अंतर नहीं होना चाहिए
- विशफुल थिंकिंग से नहीं होगा शिक्षा विकास, लागू करने की ठोस कार्य योजना जरूरी
- जीडीपी का 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च करने का कानून बने अन्यथा जो 1968 से अब तक नहीं हुआ वो आगे होगा ये जरूरी नहीं
नई दिल्ली : उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका पर आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सम्मेलन हुआ। इनमें महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विभिन्न राज्यों के गवर्नर, उपराज्यपाल और शिक्षामंत्री शामिल हुए। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को विशफुल थिंकिंग तक सीमित रखने के बजाय व्यवहार में लाना जरूरी है। इसमें जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात कही गई है। ऐसा पहले भी कहा जाता रहा है। अब इस पर कानून बनाना चाहिए ताकि इसे लागू करना सबकी बाध्यता हो। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे लागू करने की योजना का अभाव है। सिसोदिया ने कहा कि इस नीति को लागू करने पर अच्छी तरह चिंतन करके ठोस कार्ययोजना बनानी चाहिए ताकि यह महज एक अच्छे विचार तक सीमित न रह जाए।
सिसोदिया ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद भी हम लॉर्ड मैकाले का नाम लेकर अपनी सरकारों की कमियां छुपाते हैं। सिसोदिया ने कहा कि वर्ष 1968 और 1986 में नई शिक्षा नीति बनाई गई। उन नीतियों का कार्यान्वयन नहीं करने की नाकामियों को छुपाने के लिए मैकाले को बहाना बनाया जाता है। आजादी के इतने साल बाद तक हमें अपनी शिक्षा नीति लागू करने से मैकाले ने नहीं रोका है। सिसोदिया ने कहा कि आज हम संकल्प लें कि अपनी कमियों को छुपाने के लिए मैकाले का नाम अब कोई नहीं लेगा। सिसोदिया ने कहा कि आज ही एक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार हर एक घंटे, देश में एक स्टूडेंट आत्महत्या कर रहा है। हमें सोचना होगा कि शिक्षा नीति में कहाँ कमी रह गई जिसके कारण बच्चों पर इतना तनाव और दबाव है जो उन्हें आत्महत्या को मजबूर करे।
सिसोदिया ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वोकेशनल शिक्षा की बात कही गई है। अभी लगभग 80 फीसदी डिग्रीधारी युवाओं को रोजगार के योग्य नहीं समझा जाता है। हमें सोचना होगा कि 20 साल की पढ़ाई के बाद भी हमारे बच्चे अगर रोजगार नहीं हो सके तो कमी कहाँ रह गई। सिसोदिया ने कहा कि बैचलर इन वोकेशनल की डिग्री को दोयम दर्जे पर रखा जाना उचित नहीं। अन्य विषयों के स्नातक की तरह इसे भी समान समझा जाये, तभी वोकेशनल कोर्सेस का लाभ मिलेगा।
सिसोदिया ने कहा कि तोतारटंत शिक्षा और बोर्ड परीक्षाओं की गुलामी से बाहर निकलना बेहद जरूरी है। सिसोदिया ने नई शिक्षा नीति में छोटे बच्चों की शिक्षा को शामिल करने का स्वागत करते हुए कहा कि हमें शिक्षा के जरिये विकसित देशों का मुकाबला करना है। लेकिन अगर अमेरिका के छोटे बच्चों को प्रशिक्षित शिक्षक पढ़ा रहे हों, तो हमारे देश के बच्चों के लिए आंगनबाड़ी सेविका की शिक्षा पर्याप्त नहीं। सिसोदिया ने इसे घातक बताते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति को बेहतर तरीके से लागू करके हमें एक विकसित राष्ट्र बनने का सपना साकार करना है।