Friday, July 26, 2024
Homeताजा खबरेंउत्तर पश्चिमी लोकसभा क्षेत्र विकास की दौड़ में सबसे पिछडा : दयानंद...

उत्तर पश्चिमी लोकसभा क्षेत्र विकास की दौड़ में सबसे पिछडा : दयानंद वत्स  

  •  1952 से बाहरी पैराशूट सांसदों की उपेक्षा का शिकार हैं यहां के लाखों लोग
  • श्री कृष्ण लाल शर्मा, कृष्णा तीरथ, उदित राज और हंसराज हंस भी बाहर से थोपे गये

नई दिल्ली, 6 मार्च 2024

दिल्ली आदर्श मूल ग्रामीण पंचायत 360 महासंघ के अध्यक्ष शिक्षाविद् दयानंद वत्स भारतीय ने उत्तर पश्चिमी लोकसभा क्षेत्र के पिछड़ेपन के लिए सबसे बड़ा कारण बाहरी पैराशूट सांसदों को इस क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया जाना बताया है। 1952 में पहले लोकसभा चुनावों में ही सी के नायर और नवल प्रभाकर को यहां से सांसद प्रत्याशी बनाया गया था। यह दोनों बाहरी थे। उस समय यह बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र हुआ करती थी और यहां से दो सांसद चुने जाते थे। इसके बाद श्री कृष्ण लाल शर्मा, कृष्णा तीरथ, उदित राज और हंसराज हंस भी बाहर से थोपे गये। किसी भी स्थानीय निवासी को उम्मीदवार नहीं बनाया गया। 2014 और 2019 में भाजपा के ही सांसद उदित राज और हंसराज हंस रहे। लेकिन वे केंद्र सरकार की कोई भी एक ऐसी योजना अपने संसदीय क्षेत्र में लाने में विफल रहे जिससे कहा जा सके कि उन्होंने क्षेत्र में कोई काम किया हो। आम जनता ने चुनाव के बाद उनकी शक्ल तक नहीं देखी।

परिवहन की बात करें तो पूरी दिल्ली में मैट्रो कनेक्टिविटी है लेकिन बीते दो दशकों से हमारे यह दोनों सांसद अपने संसदीय क्षेत्र को रिठाला से होकर बरवाला, बवाना और नरेला तक मैट्रो की लाईन को केंद्र सरकार से मंजूरी नहीं दिला पाए। लोगों को आवागमन में भारी परेशानी उठानी पड़ रही है। स्वास्थ्य की बात करें तो बवाना और नरेला में दो बड़े औधोगिक क्षेत्र चल रहे हैं जिनमें लगभग 35 हजार औधोगिक इकाईयां चल रही हैं जिनमें लाखों श्रमिक काम कर रहे हैं। रोज दुर्घटना होती है, आग लगती है, श्रमिक घायल और हताहत होते हैं लेकिन सांसद बीते दस सालों में इन श्रमिकों के लिए ईएसआई अस्पताल तक नहीं बनवा पाए। क्षेत्र की लाखों आम जनता के लिए केंद्र सरकार से एक भी एम्स या सुपरस्पेशलिटी अस्पताल नहीं बनवा सके। नरेला जीटी रोड से सटा है फिर भी यहां पर ट्रामा सेंटर नहीं बनवा पाए। जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। दिल्ली सरकार के दो अस्पताल बवाना में महर्षि वाल्मीकि और नरेला में राजा हरिश्चन्द्र अस्पताल केवल नाममात्र का है वहां बिल्डिंग तो है पर इलाज और दवा की व्यवस्था नहीं है।

किसी भी आपात स्थिति में यह दोनों ही अस्पताल मरीज को शहर के अस्पतालों में रेफर कर देते हैं। यहां महत्वपूर्ण विभाग नहीं हैं। चिकित्सक और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ नहीं है। ऑपरेशन थियेटर, आधुनिकतम मेडिकल लेबोरेटरी तक नहीं है। आधुनिक मशीनों का अभाव है। स्वास्थ्य सुविधाएं दम तोड रही हैं। अस्पताल खुद बीमार हैं और वेंटिलेटर पर हैं। आम जनता प्राइवेट अस्पतालों या झोलाछाप डॉक्टरों के यहां जाने पर मजबूर हैं। शिक्षा की बात करें तो इस संसदीय क्षेत्र में बरसों पुराना अलीपुर गांव में स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज है। नरेला में एक और कॉलेज के लिए गांव वालों ने मुफ्त भूमि सरकार को दी है लेकिन हमारे सांसद यहां एक भी कॉलेज नहीं खुलवा पाए। बवाना में दो दशक पहले अदिति महिला कालेज खुला था जो आज भी स्कूल की बिल्डिंग में चल रहा है।

यातायात जाम की बात करें तो बवाना में दिल्ली सरकार ने श्यामा प्रसाद औद्योगिक क्षेत्र तो विकसित कर दिया पर वहां तक आने और जाने के लिए कोई नया वैकल्पिक रोड नहीं बनवाया। जिससे हजारों वाहन बरसों पुराने औचंदी रोड से गुजरते हैं। साढे 82 फुट की यह मुख्य बवाना रोड अतिक्रमण के कारण 40 फुट की रह गयी है। हर रोज यहां पूठखुर्द, बरवाला, बवाना, प्रहलादपुर बांगर, शाहाबाद दौलतपुर गांव में भारी जाम लगता है। दस मिनट की दूरी दो से तीन घंटे में तय होती है। हमारे सांसद बीते दो दशकों में इस सड़क का चौड़ीकरण तक नहीं करा सके। जबकि यह बवाना की लाईफ लाईन हैं और यह सड़क दिल्ली और हरियाणा के सैंकड़ों गांवों को कनैक्ट करती है।

बदहाल और खस्ताहाल सड़कों की बातें करें तो बवाना और नरेला विधानसभा क्षेत्र में सारी मुख्य और संपर्क सड़कें जर्जर हैं। रोज एक्सीडेंट होते हैं। गांवों के फिरनी रोड टूटे हैं। पिछले करीब दो दशकों से टूटे पड़े हैं। इसमें डीडीए और पीडब्ल्यूडी के साथ सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग की सड़कें भी शामिल हैं। एक महिना पहले उपराज्यपाल ने दिल्ली ग्रामोदय योजना चलाई थी जिसमें क्षेत्रीय डीएम और अन्य विभागों के अधिकारियों ने गांवों में जाकर लोगों की समस्याओं को जाना लेकिन आज तक एक भी समस्या का समाधान नहीं हुआ‌।

किसानों की दुर्दशा की बात की जाए तो इस संसदीय क्षेत्र के अधिकांश गांवों की कृषि भूमि का अधिग्रहण डीडीए ने कौड़ियां के दाम पर कर लिया। लेकिन ना तो उन्हें तो वैकल्पिक प्लाट आज बीसियों साल बाद भी सरकार ने नहीं दिए और ना ही अधिग्रहित भूमि का बढ़ा हुआ मुआवजा दिलवाया गया। सरकार ने भूमि अधिग्रहण के समय सब किसानों को मुआवजा राशि आसानी से दी थी लेकिन बढ़े हुए मुआवजे के भुगतान के लिए किसानों को व्यक्तिगत रुप से कोर्ट में केस लगाने पर मजबूर किया जा रहा है। जबकि बढ़ा हुआ मुआवजा सीधे किसानों को दिया जाना चाहिए था पर सांसदों ने इसके लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया। डीडीए ने ग्रामसभा की भूमि का मालिक बन बैठा है। अपनी दैनिक जरूरतों के लिए भी उन्हें भूमि उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
 

गांवों के ग्रामीणों का नारकीय जीवन : डीडीए ने दिल्ली के 360 गांवों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। सैंकड़ों गांवों को शहरीकृत कर दिया लेकिन वहां शहर जैसी कोई भी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई। गंदे पानी की निकासी के लिए किसी भी गांव में ड्रैनेज सिस्टम नहीं है। उत्तर पश्चिमी लोकसभा क्षेत्र के गांवों में खाना पकाने की पीएनजी गैस की पाइप लाईन से ग्रामीण जनता को वंचित किया हुआ है। किसी भी गांव का विलेज डेवलपमेंट प्लान आज तक डीडीए ने नहीं बनाया।

ग्रामीणों को आजादी के 77 सालों के बाद भी आज तक अपनी संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिला। भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को 20 सूत्रीय कार्यक्रम में दिए गये प्लांटों का मालिकाना हक आज तक नहीं मिला। यह सांसद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस योजना को आज तक लागू नहीं कर पाए। कोई भी बैंक गांव वालों को लोन नहीं देता
क्योंकि हमारे पास उसका मालिकाना हक ही सरकार ने नहीं दिया है। जो काम सांसद के थे और केंद्र सरकार के अधीन आते थे उनमें से एक भी योजना यह हमारे सांसद नहीं ला पाए।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments