- दिल्ली सरकार के स्कूलों से बच्चे कम होते रहे और केजरीवाल सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी रही
- केजरीवाल सरकार का शिक्षा मॉडल दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं, उनकी नीतियां गरीब विरोधी हैं
- झूठ पर बनी केजरीवाल सरकार सिर्फ विज्ञापनों पर ही पैसा खर्च करती है, जमीनी काम से इस सरकार कोई वास्ता नहीं
नई दिल्ली : दिल्ली सरकार चाहती है कि गरीबों के बच्चे स्कूलों में न पढ़ें और वह सिर्फ इसी तरह ठोकरे खाते रहें। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने बुधवार को बयान जारी कर ये बाते कहीं। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ रहे 15 फीसदी से अधिक बच्चों के लगातार कम रहने की बात बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि देश की राजधानी के स्कूलों में लगभग 14 लाख बच्चें पढ़ते हैं। इनमें से 2.5 लाख से भी अधिक बच्चें कम हो गए लेकिन केजरीवाल सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। दिल्ली सरकार शिक्षा को लेकर कितनी गंभीर है, ये समझना अब कठिन नहीं है।
आदेश गुप्ता ने कहा कि दिल्ली के 1030 सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे गरीब परिवारों के हैं। कोरोना संकट के समय दिल्ली की जनता को उसके हाल पर छोड़ने वाली सरकार को बच्चों की भी परवाह नहीं थी। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के कम होने से ये बात साफ हो जाती है कि केजरीवाल सरकार विज्ञापनों में शिक्षा क्रांति के फर्जी दावे करती रही और उसे बच्चों की परवाह नहीं थी। अन्यथा ये बच्चे आज कम नहीं होते। इस घटना से सभी बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देने के तमाम दावें भी झूठे साबित होते हैं।
गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार को बच्चों की शिक्षा से कोई मतलब नहीं है। सरकार नहीं चाहती कि गरीब के बच्चे पढ़ें। उन्होंने बताया कि जब से केजरीवाल सरकार सत्ता में आई है, परीक्षा परिणाम बेहतर करने के लिए हर साल 9वीं एवं 11वीं की परीक्षा में बड़ी संख्या में बच्चों को फेल कर रहे हैं, ताकि केवल गिने चुने बच्चे ही 12वीं की परीक्षा दे सकें। हर साल परीक्षार्थियों की घटती संख्या इसकी गवाही देते हैं। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 12वीं की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की संख्या हर साल बड़ी तेजी से घट रही हैं। उन्होंने कहा कि 2005 से लेकर 2014 तक दिल्ली में 12वीं में बैठने वाले छात्र बढ़कर 60570 से 166257 हो गए, लेकिन 2015 में केजरीवाल सरकार आने के बाद 12वीं में बैठने वाले छात्रों की संख्या घटते-घटते 112826 पर आ गई।
गुप्ता ने बताया कि केजरीवाल सरकार फेल होने वाले बच्चों को स्कूलों से बाहर का रास्ता दिखा देती है। दिल्ली देश का पहला राज्य है जहां इतनी बड़ी संख्या में हजारों बच्चों को हर साल फेल होने के बाद एडमिशन नहीं मिलता। एक आरटीआई के अनुसार अकादमिक सत्र 2015-16 से लेकर 2017-18 तक 9वीं कक्षा में लगभग आधे छात्र फेल हुए, जिनकी संख्या 323034 थीं। वहीं कक्षा 11वीं में फेल होने वाले बच्चों की संख्या 81824 थी । औसतन 400 से अधिक छात्र दिल्ली के एक हजार स्कूलों से फेल किये जाते रहे। 2019 तक के आंकड़े जोड़ लिए जाएं तो 5 लाख से अधिक बच्चों को 9वीं और 11वीं में फेल किया गया।
गुप्ता का कहना है कि कोरोना के समय करोड़ों रुपए विज्ञापन पर लुटाने वाली केजरीवाल सरकार बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की कोशिशों में विफल रही है। नतीजा ये है कि सरकारी स्कूलों में तमाम तिकड़मबाजी के बाद भी बच्चों के नामांकन की संख्या घटती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि जहां पिछले 4 सालों में प्राइवेट स्कूलों में 2.5 लाख बच्चे बढ़े हैं वहीं सरकारी स्कूलों में 1.5 लाख बच्चे कम हुए हैं। 2019 में आए इकॉनोमिक सर्वे के अनुसार दिल्ली में 2013-14 में 992 सरकारी स्कूल थे जहां 16 लाख से अधिक बच्चे पढ़ते थे। 2017-18 में 27 नए सरकारी स्कूल बनने के बावजूद बच्चों की संख्या 14 लाख पर आ गई। जबकि इस दौरान 558 प्राइवेट स्कूल बंद होने के बावजूद प्राइवेट स्कूलों में 2 लाख 68 हजार बच्चे बढ़ गए।
गुप्ता का कहना है कि अपने स्कूल को चलाने में फेल रही केजरीवाल सरकार की नजर अब नगर निगम के स्कूलों पर है, जिसे दिल्ली सरकार दिन-रात नीचा दिखाने के काम में जुटी रहती है। दिल्ली के बच्चों के भविष्य खराब करने की नीयत से न तो फंड देती है, न विकास कार्यों में उसकी कोई रूचि है। दिल्ली सरकार निगम का बजट रोककर वहां के शिक्षकों के वेतन भुगतान में देरी करती है, उन्हें परेशान करने में जुटी रहती है। जब दिल्ली के स्कूलों में नामांकन घट रहे हो, गलत तरीके से रिजल्ट सुधारने की कोशिशों के बावजूद दिल्ली का प्रदर्शन सबसे निम्नतम स्तर पर हो, केजरीवाल सरकार को अपने अधीन चल रहे स्कूलों पर ध्यान देना चाहिए।