Sunday, November 10, 2024
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केजरीवाल सरकार के दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय ने अपने पहले कांफ्रेंस का किया आयोजन

– राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020; कनेक्टिंग द डॉट्स’ विषय पर आयोजित इस कांफ्रेंस में देश के जाने-माने शिक्षा शास्त्रियों ने लिया भाग – कांफ्रेंस के पहले सत्र में पैनलिस्ट ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में टीचर एजुकेशन के सन्दर्भ में नियम, उनका इंटेंट, क्रियान्वयन तथा उसमें आने वाली चुनौतियों पर तो वही दूसरे सत्र में एनईपी व देशभर के विभिन्न शिक्षा कानूनों के बीच अंतर पर की चर्चा -आजादी के बाद से शिक्षा पर शानदार नीतियाँ बनाई गई लेकिन उसकों जमीनी स्तर पर मूर्त रूप न दे पाने के कारण भारत आज भी साक्षरता व क्वालिटी एजुकेशन के अंतरराष्ट्रीय मानकों में पिछड़ा – किसी भी पॉलिसी को सफल बनाने के लिए जमीनी स्तर पर उसके कार्यान्वयन के सभी बिन्दुओं को जोड़ना बेहद जरुरी, इन मिसिंग डॉट्स को न जोड़ पाने की वजह से शिक्षा के क्षेत्र में देश आज भी पिछड़ा – एनईपी के सफल क्रियान्वयन के लिए राज्यवार बने विभिन्न शैक्षिक कानूनों को उसके अनुरूप बदलने की जरुरत वरना एनईपी 2020 भी केवल एक अच्छा पॉलिसी डॉक्यूमेंट बनकर रह जाएगा – टीचर एजुकेशन एनईपी का सबसे अहम हिस्सा, इसे बेहतर करने के लिए टीचर एजुकेशन के क्षेत्र में ऐसे संस्थान स्थापित करने की जरुरत जो औरों के लिए उदाहरण बन सकें, दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी इन्ही में से एक- अनुराग बेहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी / अप्रेंटिसशिप को संस्थागत वातावरण में एम्बेड करना बड़ी चुनौती, दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी के पास इसका हल, यहां ट्रेनीज को सैधांतिक पढ़ाई के साथ-साथ इसी इको-सिस्टम के स्कूलों से मास्टर टीचर के साथ अप्रेंटिसशिप कर उन सिद्धांतों को मूर्त रूप से समझने का मौका भी मिलेगा- अनुराग बेहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी / वर्तमान में टीचर एजुकेशन करिकुलम में न केवल बदलाव करने की जरुरत, यह ध्यान देने की भी जरुरत कि नए शिक्षकों के लिए सपोर्ट सिस्टम बनाकर उन्हें स्कूल के माहौल में बेहतर ढंग से घुलने-मिलने में कैसे मदद कर सकते है- प्रो.पद्मा एम. सारंगपाणी, चेयरपर्सन सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस इन टीचर्स एजुकेशन, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज/ टीचर एजुकेशन में टेक्नोलॉजी और एड-टेक टूल्स के इंटीग्रेशन तथा शिक्षण के क्षेत्र में शिक्षकों को मान्यता देने की संस्कृति विकसित कर टीचर्स व उनकी टीचिंग की को और ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकता है – राज्य के शिक्षा कानूनों और केंद्र सरकार की शिक्षा नीतियों व कानूनों के बीच असमानताएं जमीनी स्तर पर नीतियों के बेहतर क्रियान्वयन में बाधक- शैलेन्द्र शर्मा,प्रधान शिक्षा सलाहकार

नई दिल्ली 10 सितम्बर 2022 : केजरीवाल सरकार के दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय में शनिवार को ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020; कनेक्टिंग द डॉट्स’ विषय पर कांफ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें एनईपी 2020 के प्रभावी कार्यान्वयन कैसे हो सकता है? इनमें मौजूदा समय में कौन-सी  संरचनात्मक चुनौतियाँ हैं तथा कैसे प्रभावी टीचर एजुकेशन के जरिए एनईपी 2020 के विज़न को सपोर्ट किया जा सकता है आदि पर चर्चा की गई| कांफ्रेंस में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया बतौर मुख्य अतिथि शामिल रहे| इस मौके पर सिसोदिया ने कहा कि देश में शिक्षा के ऊपर बहुत सी शानदार पॉलिसी बनाई गई लेकिन उनका जमीनी स्तर पर कैसे क्रियान्वयन किया जाए इसपर काम नहीं हुआ जिसकी वजह से ये नीतियाँ काफी हद तक सफल नहीं रही| उन्होंने कहा कि किसी भी पॉलिसी को सफल बनाने के लिए, जमीनी स्तर पर उसके कार्यान्वयन के सभी बिन्दुओं को जोड़ना बेहद जरुरी है। इन मिसिंग डॉट्स को न जोड़ पाने की वजह से हमने बहुत कुछ खोया है|

बता दे कि कांफ्रेंस में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सीईओ,अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के उपकुलपति, व राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की ड्राफ्टिंग कमिटी के सदस्य अनुराग बेहर बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए| साथ ही पहले पैनल डिस्कशन में सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस इन टीचर्स एजुकेशन, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज की चेयरपर्सन प्रो.पद्मा एम. सारंगपाणी, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी की स्कूल ऑफ़ एजुकेशन की प्रमुख ग्रेटा डिसूजा, सेंटा की सीईओ रमया वेंकटरमण, व टीच फॉर इंडिया से अस्वथ भरत ने भाग लिया व इस सेशन में पिरामल फाउंडेशन के सीईओ आदित्य नटराज ने मॉडरेटर की भूमिका निभाई| कांफ्रेंस के दूसरे पैनल डिस्कशन में त्रयास फाउंडेशन की  सेंटा की सीईओ रमया वेंकटरमण, कन्वर्जेन्स फाउंडेशन के लीड स्ट्रेटेजी ऑफिस, प्रवीण खांगता,शिक्षा निदेशक, दिल्ली के प्रधान शिक्षा सलाहकार शैलेन्द्र शर्मा ने भाग लिया और डीसीपीसीआर के चेयरपर्सन अनुराग कुंडू ने इस सत्र में मॉडरेटर की भूमिका निभाई|

  • – आजादी के बाद से शिक्षा पर शानदार नीतियाँ बनाई गई लेकिन उसकों जमीनी स्तर पर मूर्त रूप न दे पाने के कारण भारत आज भी साक्षरता व क्वालिटी एजुकेशन के अंतरराष्ट्रीय मानकों में पिछड़ा हुआ

भारत में आजादी के बाद से अबतक आई विभिन्न शिक्षा नीतियों पर चर्चा करते हुए सिसोदिया ने कहा कि अबतक जितनी भी नीतियाँ बनी सभी एक बहुत अच्छा डॉक्यूमेंट साबित हुई लेकिन उनके क्रियान्वयन में कहीं कुछ कमी रह गई जिसकी वजह से भारत आज भी साक्षरता व क्वालिटी एजुकेशन के अंतरराष्ट्रीय मानकों में पिछड़ा हुआ है| उन्होंने कहा कि इतनी अच्छी नीतियां बनाने के बाद भी आज हम सिर्फ इसलिए पिछड़े हुए है क्योंकि जो नीतियां बनाई गई उसे जमीनी स्तर पर मूर्त रूप देकर हर बच्चे की जिन्दगी में बदलाव लाने में सफलता प्राप्त नहीं हुई|

सिसोदिया ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि केवल नीतियाँ और कानून बनाना पर्याप्त होता तो ‘नो डिटेंशन’ पॉलिसी सबसे सफल प्रयोगों में से एक होता लेकिन यह एक बड़ा फेलियर साबित हुआ क्योंकि इसके क्रियान्वयन के बुनियादी बिन्दुओं को जोड़ने पर ध्यान नहीं दिया गया| इसके अनुसार सिलेबस में बदलाव नहीं किए गए, टीचर ट्रेनिंग में बदलाव नहीं किया गया, अगली क्लास में बच्चे के प्रमोशन के तौर-तरीकों पर ध्यान नहीं दिया गया और सीधे पॉलिसी लागू कर दिया गया| लेकिन तैयारियां न होने की वजह से इस पॉलिसी को वापस लेना पड़ा| उन्होंने कहा कि कुछ ऐसा ही एनसीएफ के साथ भी हुआ जहाँ लर्निंग आउटकम तो निर्धारित कर दिए गए लेकिन उसके अनुसार बदलाव नहीं किए गए|

एनईपी के सफल क्रियान्वयन के लिए राज्यवार बने विभिन्न शैक्षिक कानूनों को उसके अनुरूप बदलने की जरुरत वरना एनईपी 2020 भी केवल एक अच्छा पॉलिसी डॉक्यूमेंट बनकर रह जाएगा

उपमुख्यमंत्री ने कहा कि एनईपी 2020 के सफल क्रियान्वयन के लिए कई कानूनों की ओर रुख करने और उनमें बदलाव करने की जरुरत है| उन्होंने कहा कि एनईपी में कई ऐसी चीजे है जो विभिन्न राज्यों के शिक्षा संबंधी कानूनों से काफी अलग है और यदि इन कानूनों में बदलाव नहीं किए गए और इसका भी सफल क्रियान्वयन नहीं हो पाएगा और यह केवल एक अच्छा पॉलिसी डॉक्यूमेंट बनकर रह जाएगा|   

कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता शामिल अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सीईओ व राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की ड्राफ्टिंग कमिटी के सदस्य अनुराग बेहर ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मूर्त रूप देने में दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय अग्रणी भूमिका निभाएगा| उन्होंने कहा कि एनईपी का एक सबसे अहम् हिस्सा टीचर एजुकेशन है और इसे बेहतर करने के लिए टीचर एजुकेशन के क्षेत्र में ऐसे संस्थान स्थापित करने होंगे जो बाकियों के लिए उदाहरण बन सकें और ऐसे में दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों की भूमिका काफी अहम हो जाएगी| उन्होंने कहा कि एनईपी के अनुसार एक टीचर को मल्टी-डिसिप्लिनरी होना चाहिए ऐसे में दिल्ली टीचर यूनिवर्सिटी भविष्य के शिक्षकों के लिए एक अनूठा मौका है जहाँ एक इको-सिस्टम के भीतर ही टीचर यूनिवर्सिटी व स्कूल दोनों है| उन्होंने कहा कि अप्रेंटिसशिप को संस्थागत वातावरण में एम्बेड करना बड़ी चुनौतियों में से एक है, जिसका हल दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी ने निकाल लिया है,  यहां ट्रेनीज न केवल सैधांतिक पढ़ाई कर सकते है बल्कि उनके पास स्कूलों में जाकर,बल्कि अपनी 4 साल की पढ़ाई के दौरान मास्टर टीचर के साथ अप्रेंटिसशिप कर उन सिद्धांतों को मूर्त रूप से समझने का मौका भी मिलेगा| एनईपी के क्रियान्वयन पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी पॉलिसी के क्रियान्वयन के लिए यह बेहद जरुरी है कि उसके सभी हिस्सों की प्राथमिकता निर्धारित की जाए और उसके अनुसार विभिन्न स्तर पर उसके क्रियान्वयन के लिए कार्य किया जाए|

टीचर एजुकेशन में टेक्नोलॉजी और एड-टेक टूल्स के इंटीग्रेशन तथा शिक्षण के क्षेत्र में शिक्षकों को मान्यता देने की संस्कृति विकसित कर टीचर्स व उनकी टीचिंग की को और ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकता है

कांफ्रेंस के पहले पैनल डिस्कशन में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में टीचर एजुकेशन के सन्दर्भ में क्या नियम लाये गए है, इनका इंटेंट क्या है और इसके क्रियान्वयन तथा उसमें आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई| जहां पैनलिस्टों ने स्टूडेंट्स को बेहतर लर्निंग देने के लिए और स्कूल में सीखने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए टीचर एजुकेशन में टेक्नोलॉजी और एड-टेक टूल्स के इंटीग्रेशन के महत्व पर चर्चा की। इसके साथ ही इन-सर्विस टीचर्स की कॉम्पीटेंसी व प्रोडक्टिविटी में सुधार के लिए शुरू से ही उन्हें मान्यता देने की संस्कृति विकसित करने पर भी ध्यान दिया गया। पैनलिस्टों का यह सामान्य विचार था कि यदि शिक्षकों को देश की शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के वाहक के रूप में माना जाता है, तो उन्हें शिक्षाशास्त्र के चयन सहित अन्य स्वायत्तता भी दी जानी चाहिए कि उनके स्टूडेंट्स तथा स्वयं के प्रोफेशनल डेवलपमेंट के लिए क्या बेहतर है।

चर्चा में डॉ. पद्मा सारंगपाणी ने कहा, “एनईपी ने हमारे बच्चों के लिए जमीनी स्तर पर जो बदलाव सुझाया है और जो हम अभी अपने ट्रेनीज प्री-सर्विस टीचर्स को पढ़ा रहे हैं, उसके बीच बहुत बड़ा अंतर है। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग की प्रथाओं के अनुसार टीचर एजुकेशन करिकुलम में न केवल बदलाव करने की जरुरत है, बल्कि इस तथ्य पर भी ध्यान देने की जरुरत है कि हम नए शिक्षकों के लिए सपोर्ट सिस्टम बनाकर उन्हें स्कूल के माहौल में घुलने-मिलने में कैसे बेहतर ढंग से मदद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि एनईपी 2020 को हकीकत में बदलने के लिए हमें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है।

  • -राज्य के शिक्षा कानूनों और केंद्र सरकार की शिक्षा नीतियों व कानूनों के बीच असमानताएं जमीनी स्तर पर नीतियों के बेहतर क्रियान्वयन में बाधक

कांफ्रेंस के दूसरे पैनल डिस्कशन में पैनलिस्टों द्वारा चर्चा मुख्य रूप से राज्य शिक्षा कानूनों और केंद्रीय शिक्षा नीतियों या कानूनों के बीच असमानताओं पर केंद्रित थी जो नीतियों के बेहतर कार्यान्वयन को जमीनी स्तर पर लागू करने में बाधा बनती हैं। चर्चा के दौरान, पैनलिस्टों ने इस तथ्य पर फोकस किया कि देश में शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए सिर्फ नीतियां बनाना ही काफी नहीं है। नीतियों या कानूनों को प्रभावी बनाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के कानूनों को एक ही पृष्ठ पर कैसे लाया जा सकता है, इस पर समान रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। किसी भी शिक्षा नीति के बेहतर क्रियान्वयन और परिणाम के लिए समान योजना और कानूनी ढांचा होना चाहिए।

प्रधान शिक्षा सलाहकार शैलेंद्र शर्मा ने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कुछ प्रावधानों को लागू करने के लिये राज्यों के पुराने शिक्षा क़ानून को बदलने की ज़रूरत”

आरटीई 2009 के संबंध में कुछ उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गुजरात के प्राइमरी एजुकेशन एक्ट 1961 में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य तो है लेकिन इसकी जिम्मेदारी पेरेंट्स को लेनी होगी वही यहां प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत पहली से सातवीं कक्षा आती है| इस क़ानून में पाठ्यक्रम, ट्रेनिंग और मूल्यांकन का कोई ज़िक्र नहीं है। इसी तरह 1960 में बना पंजाब में प्राइमरी एजुकेशन कानून भी कुछ ऐसा ही है जहाँ पेरेंट्स को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बाध्य किया जा सकता है और न भेजने पर पेरेंट्स पर जुर्माना लग सकता है। दिल्ली के मामले में, दिल्ली के स्कूल शिक्षा अधिनियम एवं नियम 1973 में कहा गया है कि कक्षा 1 में प्रवेश की आयु 5 वर्ष होनी चाहिए, जबकि आरटीई अधिनियम 2009 में कहा गया है कि कक्षा 1 में प्रवेश 6 वर्ष की आयु में दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब ये कानून बनाए गए थे उस दौर के लिए ये आवश्यक हो सकते थे लेकिन वर्तमान परिदृश्य में बाधा के साथ साथ अनावश्यक मुक़दमे का करण बनते है| इसलिए नई शिक्षा नीति को सफल बनाने के लिए राज्यों के स्तर पर नए क़ानूनी फ्रेमवर्क की जरुरत है|

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