- “दीवार ओ दर से उतर कर परछाईयां बोलती हैं…”
- गज़लों पर श्रोताओं को झूमने और अपने साथ गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया।
- कुमार विशु ने डीयू से 1991 में एम. फिल किया था
- प्रोग्राम में कार्यक्रम प्रस्तुत करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर 2022: दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस रीगल लॉज के कन्वेंशन हॉल में “शाम ए गज़ल – एक साँझ संगीत के नाम” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विख्यात गज़ल गायक कुमार विशु संग खूब गज़लों की महफिल सजी। डीयू के शताब्दी वर्ष समारोह के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रमों के तहत संगीत एवं ललित कला संकाय द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम सोमवार देर रात तक चला। कार्यक्रम में कुमार विशु व उनकी पुत्री कु. स्वरांशी ने अपनी मोहक आवाज के साथ दर्शकों को देर तक बांधे रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की। कार्यक्रम के दौरान कुमार विशु ने “दीवार ओ दर से उतर कर परछाईयां बोलती हैं, कोई नहीं बोलता जब तन्हाइयां बोलती हैं” जैसी भावुक करने वाली गज़लों पर श्रोताओं को झूमने और अपने साथ गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया।
कार्यक्रम के आरंभ में कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कुमार विशु तथा उनकी पुत्री गजल गायिका कु. स्वरांशी एवं उनकी साज़िंदों की टीम को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। इस अवसर पर संगीत एवं ललित कला संकाय की डीन एवं विभागाध्यक्ष प्रो. अलका नागपाल ने कुलपति प्रो. योगेश सिंह सहित सभी कलाकारों व कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि कुमार विशु डीयू के संगीत एवं ललित कला संकाय के ही पूर्व छात्र हैं। उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से 1991 में एम. फिल किया था। इस अवसर पर गज़ल गायक कुमार विशु ने कहा कि आज मेरी परीक्षा है, अपने विभाग के प्रोग्राम में कार्यक्रम प्रस्तुत करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। इसके साथ ही उन्हांेने कहा कि आज थोड़ी घबराहट भी है, क्योंकि जो दौर आपने देखा होता है और उस दौर में जिन्होंने आपको सुना होता है, वही आपके सबसे बड़े आलोचक भी होते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी और वह दोनों डीयू के संगीत एवं ललित कला विभाग के विद्यार्थी रहे हैं।
कुमार विशु ने कार्यक्रम की शुरुआत में मुस्कुराहट को महत्व देते हुए कहा कि ये मुस्कुराहट आज के दौर में बड़ी महंगी हो चली है। उन्होंने मुस्कुराहट पर ही अपना पहला शेर पेश किया…. “बेबसी कुछ इस कदर हावी हुई है, मुस्कुराता अब कोई दिखता नहीं है….” कार्यक्रम में अपनी पहली गज़ल पेश करते हुए कुमार विशु ने दर्शकों को कुछ इस तरह गुदगुदाया…
“तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना है,
मैं एक शाम चुरा लूं, अगर बुरा न लगे…”
इसके बाद शुरू हुई गज़लों की महफिल देर रात तक जमी रही। उन्होंने जब बचपन को लेकर अपनी गज़ल पेश की….. “आता है याद बचपन, बीता हुआ जमाना; कागज की कश्तियों को बरसात में बहाना…” तो श्रोताओं को अपने-अपने बचपन की यादों में घूम आने पर मजबूर कर दिया।
कुमार विशु ने कार्यक्रम के बीच-बीच में अपने बैच मेट व संकाय की फ़ैकल्टी और विद्यार्थियों से भी संवाद बनाए रखा। करीब दो घंटे के अपने कार्यक्रम के दौरान उन्होंने जीवन के हर पहलू को छूने का प्रयास किया। आज के दौर में दोस्ती के हालातों को उन्होने गज़ल के माध्यम से कुछ इस तरह पेश किया….
“मिल भी जाते हैं तो कतराके निकल जाते हैं,
हाय मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं…”
कुमार विशु के साथ बीच-बीच में उनकी पुत्री कु. स्वरांशी ने भी अपनी मधुर आवाज में गज़लों की प्रस्तुति दी। उन्होंने अपनी पहली गज़ल महंदी हसन की गाई जिसके बोल थे, “बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो ना थी…” इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई रोचक गजलें पेश की।
कार्यक्रम के अंत में श्रोताओं की फरमाइश पर कुमार विशु ने जगजीत सिंह की गजल “मेरे जैसे बन जाओगे इश्क तुम्हें हो जाएगा, दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा…” के साथ शाम ए गज़ल का समापन किया। कार्यक्रम के दौरान कुलपति प्रो. योगेश सिंह, साउथ दिल्ली कैम्पस के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश, कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता, संगीत एवं ललित कला संकाय की डीन एवं विभागाध्यक्ष प्रो. अलका नागपाल व पीआरओ अनूप लाठर सहित अनेकों डीन, विभागाध्यक्ष, शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। इस संगीतमयी कार्यक्रम का मंच संचालन शताब्दी समारोह समिति की कोऑर्डिनेटर डॉ. दीप्ति तनेजा ने किया।